लॉर्ड रिपन के सुधार

            HISTORY OF MODERN NDIA           
                  1857AD.-1947AD.
                    History honours
                       Semster 6
Reform of lord Ripon 1880-1884 ad.
                      लॉर्ड रिपन के सुधार

लॉर्ड रिपन उदारवादी था और भारत के सभी वायसराय में सर्वाधिक लोकप्रिय था उसकी शांतिपूर्ण नीति व्यक्ति की स्वतंत्रता तथा स्वशासन शासन में उसका विश्वास उनकी लोकप्रियता का कारण था उसका  शासनकाल संवैधानिक सुधारों का युग था भारत की स्वशासन करने की योग्यता में उसे विश्वास था सुधार के क्षेत्र में उसकी तुलना विलियम बैंटिंग से की जा सकती है उसकी राजनीतिक तथा सामाजिक सुधारों में रुचि थी ब्रिटिश प्रधानमंत्री Gledstan यूरोप में स्वतंत्रता का समर्थक था और मानवीय मूल्यों को महत्व देता था उसने अपने भारत नीति को इन शब्दों में व्यक्त किया था हमारा भारत में रहने का अधिकार इस तर्क पर आधारित है कि हमारा वहां रहना भारतीयों के लिए हितकर है और उस दूसरे यह कि भारतीय अनुभव करें कि यह हित करें इस नीति  पर कार्य करने के लिए  उसने रिपन को वायसराय के पद पर नियुक्त किया


भारतीय शिक्षित वर्ग को महत्व-- भारत में गवर्नर जनरल के पद पर रिपन की नियुक्ति इंग्लैंड में सरकार परिवर्तन का परिणाम था 1880 ई. में आम चुनाव में डिजरायली की कंजरवेटिव पार्टी की पराजय हुई और गलेडस्टन कि लिबरल पार्टी की विजय हुई  ब्रिटिश जनता ने लिटन की प्रतिक्रियावादी और रूढ़िवादी  नीतियों को अस्वीकार कर दिया रिपन को नवीन उदार नीति को आरंभ करना था भारतीयों ने उसकी नियुक्ति का स्वागत किया

वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट को समाप्त करना-- रिपन का दूसरा लोकप्रिय कार्य वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट को समाप्त करना था डस्टन ने ब्रिटिश काउंसलिंग सभा में लिटन के इस एक्ट की कटु आलोचना की थी और प्रधानमंत्री बनने के बाद उसने रिपन को आदेश दिया था कि इस पर पुनर्विचार किया जाए 1882 ई. में रिपन ने इस एक्ट को रद्द कर दिया
 Fist Factory Act -- 1881 में रिपोर्ट ने भारतीय श्रमिक वर्ग की दशा सुधारने के लिए पहला फैक्ट्री एक्ट पारित किया बाल श्रमिकों की न्यूनतम आयु 8 वर्ष और 13 वर्ष के बाल श्रमिकों के लिए कार्य करने के 6 घंटे कर दिए गए

स्थानीय स्वशासन की स्थापना-- रिपन का सबसे महत्वपूर्ण कार्य स्थानीय स्वशासन को प्रोत्साहित करना था वह भारतीय शिक्षित वर्ग की राजनीतिक महत्वाकांक्षा के लिए कुछ उपयोगी कार्य की आवश्यकता समझता था वह भारतीयों को प्रशासन से संबंधित करना चाहता था जिससे भविष्य में खतरों से साम्राज्य को बचाया जा सके दूसरे शब्दों में वह शिक्षित वर्ग को अंग्रेजों का मित्र बनाना चाहता था उसका दूसरा उद्देश भारतीयों को स्वशासन में प्रशिक्षण देना था जिससे वे अपने देश का शासन करने में सक्षम हो सकें वह देश की नगर पालिकाओं को विकसित करना चाहता था जो उनके अनुसार देश को राजनीतिक शिक्षा देने के सक्षम हो सकें स्थानीय स्वशासन की परंपरा का विकास 1850 के अधिनियम में हुआ था प्रेसिडेंसी नगरों में तो नगरपालिका ने पहले से थी लेकिन 1850 के अधिनियम के अनेक नगरों में नगर पालिका स्थापित की गई इस प्रारंभिक अवस्था में स्थानीय स्वशासन के दो उद्देश्य प्रथम स्थान कार्यों का खर्चा वही के निवासियों पर डाला जाए दूसरा शिक्षित भारतीयों का ध्यान सरकार की नीतियों से हटाकर स्थान कार्यों की ओर आकर्षित करना था इन नगर पालिकाओं के सदस्यों को जिला मजिस्ट्रेट मनोनीत करता था और वे उनके नियंत्रण में कार्य करते थे इन संस्थाओं के पास  आय  के पर्याप्त साधन थे और वह उन्हें स्थानीय पुलिस पर भारी धनराशि व्यय करनी पड़ती थी लॉर्ड मेयो ने आर्थिक केंद्रीकरण के अंतर्गत नगर पालिकाओं के वित्तीय स्रोत पर जोर दिया था इनके कारण विभिन्न प्रांतों में 1871 और 1874 के मध्य अधिनियम पारित किए गए थे

 शिक्षा सुधार-- लॉर्ड रिपन ने शिक्षा के विकास की जांच की उसने इसके लिए डब्लू डब्लू हंटर की अध्यक्षता में एक आयोग नियुक्त किया इस आयोग का कार्य था कि वह 1854 केwood डिस्पैच के सिद्धांतों के कार्यों का जांच करें और भविष्य के लिए शिक्षा की नीति को निर्धारण करें इस आयोग में 20 सदस्य थे जिसमें से 8 सदस्य भारतीय थे रिपन का विचार था कि शिक्षा के व्यापक प्रसार से ही भारतीयों का उत्थान संभव हो सकता है

Civil service-- रिपन उदार दृष्टिकोण रखने वाला वायसराय था और भारतीयों को उच्च प्रशासन से जोड़ना चाहता था उसने या प्रस्ताव किया कि लंदन के साथ-साथ भारत में भी आई सी एस की परीक्षा का आयोजन किया जाए रिपन का कहना था कि इससे बड़ी संख्या में भारतीय इस परीक्षा में बैठ सकेंगे लेकिन गिरी सरकार ने उसका सुझाव स्वीकार नहीं किया फिर भी बने परीक्षा में बैठने की उम्र को 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 वर्ष कर दिया इससे भारतीयों का असंतोष दूर करने मैं उसे सफलता मिली

 जनगणना--- रिबन से पूर्व किसी वायसराय ने जनगणना का कार्य नहीं कराया था रिपन ने भारतीय जनसंख्या वैसा दादी के बारे में सूचना प्राप्त करने के लिए जनगणना कराना आवश्यक समझा और 1881 ई. में पहली बार भारत में जनगणना की गई इससे भी रिपन की लोकप्रियता में वृद्धि हुई

  

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