दिल्ली दरबार

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                         दिल्ली दरबार


 1876 ई. में ब्रिटिश पार्लियामेंट ने राज उपाधि अधिनियम पारित किया गया  जिसमें महारानी विक्टोरिया को कैसर-ए-हिंद की उपाधि से विभूषित किया गया था
 इस उपाधि की औपचारिक घोषणा करने के लिए  Lord लिटन ने 1 jan 1877 ई. को दिल्ली में एक वैभवपूर्ण और शानदार दरबार का आयोजन किया
 
भारतीय राजाओं और नवाबों ने भाग लिया इस दरबार में उपाधि की घोषणा की गई दुर्भाग्यवश इस समय देश के अधिकांश भाग में भीषण अकाल पड़ा हुआ था जिसमें हजारों व्यक्ति प्रतिदिन भूख से मर रहे थे
 इस दरबार में मिथ्या प्रदर्शन पर सरकार ने करोड़ों रुपया   खर्च किया था भारतीय जनता की दृष्टि से यह  राष्ट्रीय  अपमान था भारतीयों ने दरबार की कटु आलोचना की कोलकाता के एक समाचार पत्र में इसकी तुलना करते हुए लिखा गया कि जब रोम जल रहा था नीरो बंशी बजा रहा था 
लाला लाजपत राय ने लिखा था दरबार ने भारतीयों के मन में एक नए आंदोलन का प्रादुर्भाव हुआ उन्होंने भारत भारतीयों का नारा लगाया लिटन भारतीय राजाओं तथा नवाबों को ब्रिटिश साम्राज्य से घनिष्ठ रूप से जोड़ना चाहता था उसने भारत मंत्री से आग्रह किया था कि एक भारतीय काउंसलिंग का गठन किया जाए और दरबार में उसकी घोषणा कर दी जाए
 लेकिन इस समय ब्रिटिश नीति राजाओं अलग अलग रखना चाहती थी लॉर्ड लिटन  का प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया फिर भी कुछ राजाओं को काउंसलिंग ऑफ प्रेस की उपाधि प्रदान की गई  

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