,वर्नाक्यूलर एक्ट प्रेस क्या है इसको क्यों लागू किया गया था
B.A HISTORY HOBOURS
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HISTORY OF MODERN INDIA1857-1947AD
वर्नाक्यूलर एक्ट क्या है? इसको क्यों लागू किया गया था?
लिटन का एक और अन्य कार्य जिससे भारत के लोगों की भावनाओं को गहरा आघात पहुंचा वह है वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट लिटन की अफगान नीति, अकाल नीति, दरबार का आयोजन, आदि की भारतीय समाचार पत्रों में कटु आलोचना की जा रही थी उसने वैभव पूर्ण दरबार किया जब हजारों भारतवासी अकाल से मर रहे थे इसके बाद 1878 AD में उसने अफगानिस्तान से युद्ध छेड़ दिया जिससे इस देश का करोड़ों रुपया खर्च किया गया यह सब समाचार पत्रों में कड़ी निंदा की गई अतः उसने प्रेस के विरूद्ध कठोर कार्यवाही करने का निश्चय किया भारत मंत्री से तार द्वारा स्वीकृति लेकर उसने 14 मार्च 1878 ई. को वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट पारित किया जिसमें निम्नलिखित प्रावधान थे-------
(1) मजिस्ट्रेट को अधिकार दिया गया कि वह सरकार की स्वीकृति से किसी भी मुद्रक या प्रकाशन को जमानत जमा करने की आज्ञा दें तथा उनसे इस प्रकार का प्रतिज्ञा पत्र भरवा ले कि वह सरकार के विरुद्ध या भिन्न जातियों में विद्रोह की भावना उत्पन्न करने वाली सामग्री का प्रकाशन नहीं करेगा
(2) सरकार को अधिकार दिया गया कि इसका उल्लंघन होने की दशा में वह जमानत तथा छापेखाने को जप्त कर लिया जाएगा
(3) मुद्राक को विकल्प दिया गया कि वह सरकारी सेंसर को प्रूफ भेजें तथा ऐसे सब सामग्री को हटा दें जिसे अस्वीकार क्या गया हो
लिटन की निंदा भारत तथा इंग्लैंड के समाचार पत्रों में खुलकर हो रही थी उसकी निंदा के विषय थे दिल्ली दरबार, अकाल में उदासीनता,अफगान युद्ध, आर्म्स एक्ट भारत निंदा को राजद्रोह मानता था वह उसी प्रकार का प्रतिबंध भारतीय समाचार पत्रों पर लगाना चाहता था जैसा आयरिश समाचार पत्रों पर था भारत के अंग्रेजी समाचार पत्रों की आलोचना को व आपत्तिजनक नहीं मानता था उसकी परिषद के सदस्यों ने एक्ट का विरोध किया था उसका कहना था कि परजातीय भेदभाव स्पष्ट हो जाएगा 14 मार्च 1878 को बिल परिषद में प्रस्तुत किया गया और उसी दिन उसे पारित कर दिया गया इस अधिनियम में दंड देने का अधिकार न्यायाधीशों को नहीं दिया गया बल्कि मजिस्ट्रेट को दिया गया मजिस्ट्रेट के निर्णय के विरूद्ध कोई अपील नहीं हो सकती थी,
इस एक्ट का व्यापक रूप से विरोध किया गया इसे गला घोटू कानून, घोषित किया गया समाचार पत्रों संस्थाओं ने सरकार को ज्ञापन दिए इंग्लैंड में इसका विरोध किया गया भारत मंत्री की परिषद के सदस्यों ने इसका विरोध किया लेकिन अंग्रेजी समाचार पत्रों तथा सिविल सर्विस के लोग ने लिटन का समर्थन किया वह भारतीय समाचार पत्रों की आलोचना से चिंतित थे वस्तुतः इस अधिनियम से स्पष्ट हो गया था कि लिटन कितना प्रतिक्रियावादी राजनीतिक था
Sir arskeen Peri इंडिया काउंसलिंग के सदस्य थे उन्होंने इस अधिनियम को प्रतिगामी तथा असंगत कहा उनका कहना था कि समाचार पत्रों के दमन के लिए कोई साम्राज्यवादी कानून इससे कठोर नहीं हो सकता
सुरेंद्रनाथ बनर्जी ने इसे वज्रपात कहा भारतीयों के असंतोष का कारण यह था कि यह अधिनियम केवल भारतीय भाषाओं के समाचार पत्रों पर लगाया गया था सर फिरोजशाह मेहता ने इस की कटु आलोचना की स्थान स्थान पर विरोध की सभाएं हुई इससे भारतीय में विशेष रूप से शिक्षित मध्यम वर्ग में अपने अधिकारों के प्रति जागृति आई
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